
जोधपुर | राजस्थान हाईकोर्ट की न्यायाधीश निर्मलजीत कौर व दिनेश मेहता की खंडपीठ ने सोमवार को विभिन्न याचिकाओं को स्वीकार करते हुए कहा, कि ग्राम सेवा समितियों में नियुक्त व्यवस्थापक बैंकों के कर्मचारी हैं तथा उन पर सहकारी विभाग द्वारा वर्ष 2003 व 2008 में जारी प्राथमिक कृषि साख व सहकारी समितियों (पैक्स) व वृहद बहुद्देश्यीय कृषि साख समितियों (लैम्प्स ) के कर्मचारियों के लिए जारी सेवा शर्तें लागू नहीं की जा सकती। याचिकाकर्ताओं डालूराम कुमावत व अन्य की ओर से अधिवक्ता अशोक कुमार चौधरी ने याचिकाएं दायर कर कोर्ट को बताया, कि रजिस्ट्रार सहकारी समितियों की ओर से वर्ष 2003 व 2008 में जारी पैक्स व लैम्प्स में नियुक्त व्यवस्थापकों के लिए जारी सेवा शर्तें केवल समितियों की ओर से नियुक्त व्यवस्थापकों पर ही लागू की जा सकती है, सीसीबी की ओर से नियुक्त व्यवस्थापकों पर लागू नहीं हो सकती है। विभिन्न जिलों की केंद्रीय सहकारी बैंकों के प्रबंध निर्देशकों द्वारा नियुक्त समितियों के व्यवस्थापकों का स्थानांतरण भी बैंक ही करता रहा व कई मामलों में चार्जशीट आदि भी बैंक की ओर से दी गई। वर्ष 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इन कर्मचारियों को समितियों का कर्मचारी मानने से मना कर दिया था। जबकि रजिस्ट्रार की ओर से समितियों के अन्य व्यवस्थापकों के साथ सीसीबी द्वारा नियुक्त व्यवस्थापकों को भी समितियों का कर्मचारी घोषित करते हुए उन पर अपने नियम लागू कर दिए। सरकार की ओर से कहा गया कि समितियों में कार्यरत सभी व्यवस्थापक समितियों के ही कर्मचारी हैं तथा वहीं से वेतन, भत्ते आदि प्राप्त करते हैं। खंडपीठ ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद निर्णय सुरक्षित रख लिया था।